न उलझ जाया करो
न उलझ जाया करो
यूँ न किसी से यूँ ही उलझ जाया करो
हर किसी की है अपनी सोच समझ जाया करो।
हर वह महफ़िल जिसमें रस्में हो रिवायतें हो
उस महफ़िल में तू ए दिल मत कभी जाया करो।
इश्क़, तड़प, जुस्तुजू सब अंदर के हैं बवंडर
गर सूरत बुरी हो तो कभी आईना न दिखाया करो।
दिल परिंदा है कभी भी कहीं की उड़ान भरेगा
उड़ने वालों के पर न कभी काट जाया करो।
नफरत अपने बस की नहीं अंदाज़ अलग है अपना
किसी की नादानी पर कभी यूँ ही मुस्कुराया करो।।