महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि
शोभित निर्मल चन्द्रमा, आभूषण निज सर्प।
अग्निशिखा सम नेत्र हौं, नष्ट करें शिव दर्प।।१।।
चन्दन चर्चित भस्म से, व्याघ्रचर्म तव वस्त्र।
नीलकंठ महादेव कर, लिए त्रिशूलहि शस्त्र।।२।।
अंगराग तन भस्म ले, गंगा धारें शीश।
अविनाशी शिव शुद्ध जो, देते अभयाशीष।।३।।
कोटि सूर्य समान शिव, श्वेत वर्ण गम्भीर।
कामदेव सम कान्तिमय, उमानाथ अति धीर।।४।।
कलारहित कल्याण प्रद, करें कल्प का अन्त।
त्रिपुरासुर नाशक शिवम, सुंदर शम्भु अनन्त।।५।।
मृग वर परशु अभय लिए, महादेव निज हाथ।
पद्मासन में लीन हुए, काशीराज रख साथ।।६।।
पञ्चम स्वर गायन कुशल, डमरू बजे मृदंग।
दया सागर गिरिजापति, भूतनाथ अड़भंग।।७।।
अद्वितीय आनन्दमय, अतुलनीय शिवशक्ति।
अभयदान देते सदा, करता जो नर भक्ति।।८।।
