अग्निपरीक्षा
अग्निपरीक्षा
उड़ता देखूँ मछलियों को, धरती पर हो तारे
गेंद बना खेले सूरज से, चाँद पर झूले झूला
ख़्वाब मेरे अंबर छूने के नहीं रही अब अबला
पढ़ी लिखी या अनपढ़, हूँ समझी सुलझी नार
सीता सा पावन चरित्र मैं रखती, पर हाथों
में झाँसी की रानी सी तलवार है, तैयार हूँ
हर वार को जो करना चाहोगे बदनाम तुम
दोगे तुम भी अग्निपरीक्षा, माँगूँगी अधिकार वो
लडूँगी अपने सम्मान के ख़ातिर मानूँगी ना हार
रही नहीं मैं अब वो सीता जो दूँगी, अग्निपरीक्षा
ना जाऊँगी धरती मे समा, रहूँगी तेरे सामने ऐसे
पलपल तू पछतायेग, ले ली क्या ये आफत मोल
नहीं मैं करती झूठी जिद्द, नहीं झूठा अहंकार
सीता मैं भी बन जाऊँ दे दूँ हर अग्निपरीक्षा
पर पहले तुम भी तो राम सा महान बनकर दिखाओ!!