जुस्तजू
जुस्तजू
खुले सिक्कों जैसी,
कहीं भी मिल जाती हैं
तुम्हारी यादों ने मुझे ही नहीं,
मेरे घर को भी भर रखा हैl
किताब के बीच,
कुछ पुराने गोंद से चिपके ख़त मिले आज,
काश ! ऐसा कोई गोंद हमारे रिश्ते में भी होताl
जुस्तजू
खुले सिक्कों जैसी,
कहीं भी मिल जाती हैं
तुम्हारी यादों ने मुझे ही नहीं,
मेरे घर को भी भर रखा हैl
किताब के बीच,
कुछ पुराने गोंद से चिपके ख़त मिले आज,
काश ! ऐसा कोई गोंद हमारे रिश्ते में भी होताl
जुस्तजू