जुस्तजू
जुस्तजू
ख़्वाब जल चुके है सब, अब बस राख बची है..रूह तो कब की छोड़ गईं जिस्म मेरा,अब तो बस ज़िंदा लाश बची है...जुस्तजू
आयीटयूनस के जमाने में, ग्रामोफोन जैसा हूं में....बस यही फर्क है मेरी मोहब्बत, और तेरे ईश्क में..!!जुस्तजू
पूरी तरह से जीना, कब का भूल चूका हूँ मैं,कुछ तुम में जिन्दा हूँ, कूछ खुद मे बाकी हूँ मैं..!!जुस्तजू
रहने दे कुछ बाते… यूँ ही अनकही सी,कुछ जवाब, तेरी-मेरी ख़ामोशी में अनकहे ही अच्छे हैं.जुस्तजू
कारीगर तुम भी हो, कारीगर में भी हूँ,बस फर्क इतना हैं,तुम मोतियो को पिरोते हो,और में एहसासो को...!जुस्तजू