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तनहा -2

तनहा -2

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मेरी आँखें सोती रहती हैं, पर दिल जगता रहता हैं,

ताकता रहता हैं अंधेरों को, इन्हीं से निकलेगा कोई बिछड़ा हुआ अपना।

जो मेरी रूह में झांकेगा, और मेरी ज़िन्दगी में रौशनी बिखेरेगा,

भीड़ में खो गया कहीं शायद, अपना चेहरा तलाश करता हूँ।

मेैं खुद भी गैर हूँ खुद के लिए, मुझे पराये समझने वाले तेरी हर बात में सच्चाई है!!

 


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