जो मेरे गाँव की थी
जो मेरे गाँव की थी
बात उसकी थी और हवाओं में थी
एक लड़की जो मेरे गाँव में थी।
मुझसे कब कोई वास्ता था उसे
धूप भी मुद्दतों से छाँव में थी।
हम दिखाते किसे अगन अपनी
शाम तो मुब्तला घटाओं में थी।
चाह कर भी कभी न तोड़ सके
ऐसी बेड़ी हमारे पाँव में थी।