किताब
किताब
कभी किसी की कल्पना को कहानी बना,
कानों में कह जाती है किताब।
कभी कविता बन किसी अतृप्त कामना के,
अश्रु सी बह जाती है किताब।
व्यथित व्याकुल व्यक्ति को धीरे से,
स्नेह लेप लगा आशा की थोड़ी औषधि दे।
अर्धमीलित नेत्रों में सुन्दर स्वप्न सजा,
हौले हौले हाथ से ढह जाती है किताब।
समाधान समस्त समस्याओं का सन्निहित,
उत्तर है ये दुष्कर प्रश्नों का।
हर उलझन को सुलझाने की क्षमता,
खोल हर गिरह जाती है किताब।
स्पर्श घ्राण दृष्टि श्रवण तक,
नहीं सीमित रहती इसकी आलोक प्रभा।
भौतिक इन्द्रियों से गहन अंतर्मन तक,
हर जगह जाती है किताब।
घृणा विरोध प्रतिबंध मिला कभी,
तो कभी मिली भीषण अग्नि की भेंट।
सोचो तो इतनी कोमल हो कर भी,
कितना कुछ सह जाती है किताब।
जीवन मृत्यु का ये शाश्वत अनवरत चक्र,
सभी को एक पाश में बाँधे है।
नश्वर तन के मन-विचार को अमर कर,
स्मृति संजो रह जाती है किताब।
