बसंत -3
बसंत -3
सूखा पत्ता
बसंत आया है
हाँ बसंत आया है
बाग बगीचों अमराइयों में
कह रहा, बस ! अब होगा अंत
उदासी का, कुहासे का
जब आएगा बसंत
झाड़ दिया पुराना सब
सब कहते बसंत
लगता पतझड़
सोचता हर पत्ता
शाख से छूट कर
कौन हूँ मैं,क्यों हूँ
कहाँ पर है मेरा घर
अनादि से है ये सफर
क्यों कर ? जन्मता मिट कर
गर्भ में फिर सृजित कोमल
किसलय खडे़ तनकर
झड़ गया,उड़ रहा मैं
सूखा पत्ता ! गिर कर
मर मिटूँगा ,पर पुनः
भूमि उपजाऊ कर
स्व बलिदान कर
सूखा पत्ता ! हूँ मैं
सूखा पत्ता !
लाउँगा बसंत
सूखे तनों से झांकेंगे
नूतन पल्लव कोमल
लटकेंगीं आम्र मंजरी
कोयल गायेगी कुहुक-कुहुक
जीवन का होगा संचरण
कहीं पहला चरण
कहीं अंतिम चरण
घोंसलों से आएंगी
नवल आवाजें चूं चूं कर
फिर शुरू होंगी न उड़ानें
सूखा पत्ता हूंँ मैं
लाउँगा बसंत !
