यह उम्र पचास
यह उम्र पचास
है अजीब यह उम्र पचास
होती इसमें बात बड़ी खास
जवानी का दायरा कम
और बुढ़ापे का आगाज़
पार करते ही अर्ध शतक
देता है अलग ही आनंद
ज़िम्मेदारियाँ होती है भरपूर
पूरा करने में बन्दा पाबंद
नहीं लगती बोझ कभी
ज़िम्मेदारी की यह पोटली
ज़िन्दगी दिखती है भरपूर
नहीं होती हंसी अब खोखली
कंधे से कन्धा मिलाकार
अब बच्चे साथ चलते हैं
छाती चौड़ी हो जाती है
उनके सपने अपने लगते हैं
प्यार भरपूर बांटने का
वक्त होता है यही सही
सपने बच्चों के साकार हो
पीछे इससे कोई हटता नहीं
सफर इस मुकाम का
कुछ अलग सा ही होता है
जीने का मकसद बदल जाता है
आदमी जिसमें खो जाता है
राहें अब इस मोड़ पर
बहुत ही भिन्न होती है
ज़िन्दगी खुद की नहीं
बच्चों के भविष्य में दिखती है
रोज़ एक नया तजुरबा
आज़माइश रोज़ एक नई
अपनी रुचियों से बेखबर,
होते सपने उजागर, कुछ अलग ही
बेटे का सेहरा, विदाई बेटी की
सपनों की सीमा होती यही
सर्व समर्पण से इन सपनों को
निभाना चाहता है दिल से हर कोई
यह पड़ाव अपनी उम्र का
इसको जियेगा शान से जो भी
मकसद जीने का होगा पूरा उसका
सौगात लगेगी डालती शाम भी
आगाज़ असली ज़िन्दगी का शायद
शरू होता है पचास के आंकड़े से
आने वाला कल दस्तक देता है
उठ कदम बढ़ा ,जाग जा अब नींद से
हर उम्र का यूं होता है
अलग ही एक अंदाज़ अपना
कहीं आगाज़ तो कही अंजाम
कहीं गिर के उठना, कहीं संभलना
राज़ ज़िन्दगी का यही तो है
कदम कदम पर आहट नयी
बीता पल अक्स छोड़ जाता है
आने वाला लाता खुशियां कई.......