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रिश्तें और रिश्तों की गहराई।

रिश्तें और रिश्तों की गहराई।

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उम्र के ठहरे से मुकाम पर।

आकर अक्सर हम सोचने लगते है।

रिश्तें और रिश्तों की गहराई को।


हर मोड़पर एक रिश्ता पनपता है।

अपने और अपनों के बिच।

केकिन समझ नहीं पाते हम।

रिश्तें और रिश्तों की गहराई को।


वक्त चलता है हौले हौले।

हम भी चल पड़ते है पीछे - पीछे ।

बस भागते है, मेहसूस भी नहीं कर पाते है,

रिश्तें और रिश्तों की गहराई को।


वक्त के साथ, बनते और निभते जाते है।

जबरन निभाते जाते है,

किसी ढोते बोझ के समान,

रिश्तें और रिश्तों की गहराई को।



जब थक जाते है,

हार जाते है, अपने और अपनों से लड़ते लड़ते

तब भीतर से मेहसुस करना चाहते है,

रिश्तें और रिश्तों की गहराई को।



जिंदा हो रिश्ते ,

तो पनाह देते है, हर हालात और मुकांपर।

मुर्दा हो तो, तकलीफ नुमा हो,

बस बद्दुआ देते है,

रिश्तें और रिश्तों की गहराई को।



मुश्किल होता है जीना।

बगैर किसी एहसास के

और हम फिर निकल पड़ते है तलाशने,

रिश्तें और रिश्तों की गहराई को।


मुक्कमल होता है वह मुकाम।

जब हम पा लेते है,

और समझने लगते है।

रिश्तें और रिश्तों की गहराई को।







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