"" जुस्तजू ""
"" जुस्तजू ""
कौन हो तुम, कभी देखा न तुझे
तो कैसे तेरी तस्वीर बना लेता हूं मैं।
हर रंग में डुबोकर काश मेरे साथ
तेरी तकदीर बना लेता मैं ।
तेरे इंतजार में हजारों दफा सिर्फ
तेरी तस्वीरों को ही निहारा हूं मैं ।
तेरे मेरे प्यार की जो हल्की सी कशिश थी
उस तस्वीर का अधूरा सा
हिस्सा आज भी ढूँढता हूं मैं।
बेरंग पन्नों से ये जिंदगी बस काट लिया मैंने
मुड़-मुड़ कर देखता हूं
आज भी हर आहट में कहीं तुम वही तो नहीं।
कुछ अनकहा सच ये भी है कि
आज भी दर ब दर
तेरी आरजू सा क्यों है
न जाने आज भी तेरी जुस्तज़ु सा क्यों है।