बाल मजूरी/ बाल कलाकार
बाल मजूरी/ बाल कलाकार


मेरे पति की तबादला पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिला में हुआ था।जो मेरे घर से करीब पांच - छह घंटो का सफर था।कुछ दिनों में वो वहां घर के सभी जरूरतों के मुताबिक सामानों को व्यस्थित कर मुझे ले जाने के लिए आए।मै भी बहुत खुश थी।नई जगह ,नई लोगो के साथ पहचान बढ़ेगी।वहां के लोगों की सोच और विचारों को समझने का मौका मिलेगा।शुरू से ही मुझे नए लोगो से मिलने की उत्सुकता रहती है।इससे लोगों की सोच और विचारों का आदान प्रदान होता है।ज़िन्दगी जीने के लिए नए अनुभवो को जानना मेरी सब समय ही रुचि रही है ।
मै भी खुशी खुशी निकल पड़ी अपने पिया के साथ।उसके बाद इतने घंटो की यात्रा,नए नए प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलेंगे । मैं बहुत खुश थी। कार के पिछली सीट में मै और मेरे पति बैठ गए।गाड़ी ड्राइवर चला रहा था।और मै चलती गाड़ी से बाहर के दृश्यों के साथ कुछ खट्टी मीठी यादों के साथ सफर करने लगी।
दो घंटो के बाद ड्राइवर ने एक टी स्टाल पर गाड़ी खड़ी कर दी ,क्योंंकि सबेरे का वक़्त था चाय का तलब भी चढने लगा था।हमलोग तीनों ही स्टॉल के भीतर जाने लगे।सामने देखा तो एक महिला और उससे लिपटे दो बच्चो को दस बारह लोगो ने घेरा हुआ था।एक बच्चे की उम्र एक साल की होगी।जो माँ के गोद में था।और दूसरा बच्चा लगभग दस साल का होगा।जो शायद किसी कारणवश माँ से लिपटा हुआ था।यह देख मेरी भी उत्सुकता बढ गई।और मै उसकी तरफ बढ़ने लगी।पास जाकर देखा तो उस बच्चो की माँ रो रही थी।शायद वो औरत अपने बच्चे को वहां मजूरी करवाना चाहती थी,इसलिए वो उस स्टॉल के मालिक से फरियाद कर रही थी।और उसकी फरियाद को स्टॉल का मालिक मना कर रहा था।इसी बात में भीड़ जम गई थी।उस बच्चे की माँ महज दो सौ रुपए के लिए अपने बेटे को काम पर रखना चाहती थी।उन्हीं लोगों में से कोई मालिक को कह रहा था कि बच्चे को रख ले।लेकिन मालिक शायद बाल मजूरी के खिलाफ था।इसलिए वो बार बार मना कर रहा था।इसलिए बच्चा सहमा सा अपनी माँ से लिपटा हुआ था।मेरे पति की तेज आवाज ने मेरा ध्यान तोड़ा और चाय के तरफ इशारा कर अपने पास बुला लिया।और मै भी उनके पास चली गई चाय पीने।।लेकिन मेरा पूरा ध्यान उस औरत और उसके बच्चो की तरफ था। हमलोगो की चाय खत्म हुई और हमलोग वहां से रवाना देने लगे।लेकिन इस सफर में मेरा पूरा केंद्र उस औरत और स्टाल के मालिक पर था।कौन सही कौन गलत ,मुझे समझ नहीं आ रहा था।वो औरत भी अपनी जगह सही थी,जो दो पैसो के लिए अपने बेटे को वहां मजूरी करवाना चाहती थी।और स्टॉल के मालिक का निर्णय भी ठीक था जो बाल मजूरी के खिलाफ था।
इसी विचारधारा से मै अपनी पति के क्वार्टर तक पहुंच गई।घर बहुत ही बारीकी से सजी हुई थी।हर एक चीज की सुविधा उपलब्ध थी यहाँ।हो भी क्यों न ,गवर्मेंट की ऊंची पोस्ट में काम करने की यहीं तो सुविधा होती हैं।वो तो फ्रेश होकर चले गए अपने ऑफिस।और मै घर का मुआयना करने लगी।फ्रेश होकर लंच बनाया।दोपहर को पतिदेव भी आ गए ,और लंच खाकर फिर चले गए।मैंने भी लंच खाया और चली गई आराम करने।तब तक मै उस बात को भूल चुकी थीं।इसलिए एक अच्छी नींद भी ले लिया।
शाम को उसके आने के बाद हम दोनों ने मिलकर चाय पी और वो अपने कामों में लग गए।और मैंने भी टीवी ऑन कर दिया।तो देखा अवॉर्ड फंक्शन हो रहा हैं एक चैनल में ।मुझे अवॉर्ड फंक्शन देखना बहुत अच्छा लगता है।लेकिन आज जब मै एक बाल कलाकार को अवॉर्ड लेते हुए देखी तो मुझे अजीब लगा।उस बाल कलाकार के लिए वहां सभी लोगो ने तालियां बजानी शुरू कर दिया।आज के पहले मुझे भी तो यह अच्छा लगता था लेकिन आज मुझे अच्छी नहीं लगी ,पता नहीं क्यों ,????????
शायद आज जो घटना सबेरे मेरे सामने घटी,उसके बाद मुझे यह अच्छा नहीं लगा।मेरे मन में कई तरह के प्रश्न उठने लगे।यह बाल कलाकार भी तो इतने कम उम्र में काम कर रहे है,इन्हे भी इसके लिए अच्छी खासी पारिश्रमिक मिलती हैं ।इनके लिए तो सभी तालियां बजाकर खुशी जाहिर कर रहे है,किसी ने इसका विरोध करने का नहीं सोचा।तो फिर उस महिला और उसके बच्चो की क्या गलती थी ? वो तो मात्र दो सौ रुपए की चाह रख रही थी।तब उसे क्यों बाल मजूरी के दर्जे में रखा गया ??
मै तो अभी भी इसका समाधान ढूंढ रही हूं।क्या आप लोगों के पास इस प्रश्न का कोई उत्तर है ??