अंखंड ज्योत
अंखंड ज्योत
मेरी धैर्य की परिचय है मेरी पल्लू
मै पूरी होकर भी कुछ कम हू,या
कहूं कि मै बहुत कुछ होकर भी
कुछ नहीं हूं।
तुम्हारी झूठी शान और पहचान में
अपने स्वाभिमान को कहीं छुपाई
हुई हूं,क्योंंकि मेरी धैर्य की परिचय
है मेरी पल्लू।
मंज़ूर नहीं अब मुझे इस चारदीवारी
में बंद रहना,चुनौतियों का सामना करना
हमने सीख लिया है।
शिक्षा पर हमारा भी अधिकार है ,जंग किसी
और से नहीं ,खुद से
खुद की हुनुर को निखारना है मुझे।
रखना है हौसला नील गगन में उड़ जाने का मुझे,
नारी की ब्यथा पर नहीं नारी
सम्मान का अखंड ज्योति जलाना है मुझे।
