परीक्षा और विद्यार्थी
परीक्षा और विद्यार्थी
लो मार्च आ गया,
परीक्षाओं की हो गई शुरुआत,
अभिभावक लगाऐंगे अपने बच्चों पर अब घात,
हाय! अब बचपन मारा गया।
परीक्षाओं के नाम पर ऐसी मारा मारी है,
पन्द्रह से सोलह घण्टे पढ़ना है जरूरी,
तभी होगी तुम्हारी हर मांग पूरी,
यही कह कह कर बच्चों को डराया है।
देखो करना है तुम्हें नाम रौशन,
लाना है तुम्हें नब्बे से ऊपर परसेंट (प्रतिशत),
तुम्हें मिलेगी गाड़ी(कार/बाइक) सेंट परसेंट,
नहीं तो पहले ही नाम लिखवा लेना
अस्पताल में ऑन प्रिकाॅशन (सावधानी वश)।
लो आ गया अब समय नतीजे का,
अभिभावकों ने लगाई आस,
अव्वल नंबरों से होगा अपना बच्चा पास (उत्तीर्ण),
पर बच्चा झेल न पाया यह बोझ दबाव का।
रास्ता अपनाया उसने अपने जीवन करने समाप्त का,
किसी ने लगा दी छलांग अपनी बिल्डिंग के टैरिस से,
थक चुका था वो अपने अभिभावकों की अपेक्षाओं से,
इसलिए चुन लिया उसने यह रास्ता नाउम्मीदी का।
खो दिया किसी ने लाल किसी ने अपनी परी को,
अभिभावकों की अपनी महत्वाकांक्षा,
बन गई सबब उनके अपनों के जीवन के सारांश का,
क्या लौटा सकेंगे उनको जो थे उनके आंखों के तारों को।
ज़रा सोचो अगर वो ही न रहे,
जिनके लिए देखे सपने हजार,
क्या पूरी हो पाएंगी महत्वाकांक्षाऐं अपार,
कैसे जीवन बितेगा उनके बिना, जो अब जीवित नहीं रहे।।
