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प्रथम प्रेम का प्रथम स्पर्श

प्रथम प्रेम का प्रथम स्पर्श

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वो था सावन,

बड़ा मन भावन,बिन बादल बरसात हुई,

जब हल्की सी छुअन से टंकार हुई,

हृदय मेघ उमड़ घुमड़ गया प्रथम प्रेम की शुरुआत हुई।


प्रथम प्रेम की शुरुआत हुई,

सांझा हुआ इक नाता था,

मात-पिता की आज्ञा से,

परिणय का वादा था,

पर उस दिन जो बात हुई,

ऐसा लगा कि उनसे पहला कोई नाता था।


ऐसा लगा उनसे पहले का कोई नाता था,

उनसे पहले भी थे मिले कई,

पर ऐसे न कोई लुभाता था,

इण्डिया गेट ने भी महसूस किया,

उनसे जो मेरा नाता था,

गली गली गुलिस्तान हुई,

जब नजरें उनसे चार हुईं।


जब नजरें उनसे चार हुईं,

दिल की गली गुलजार हुई,

जब अचानक से अंगुली छू गई,

बिजली सी ऐसी चमक गई,

कि दिल की धड़कन भी थी बढ़ गई,

लबों पर थी मुस्कान नई,

थे शरारत भरे से नैन भी।


थे शरारत भरे से नैन भी,

बैरन हवा का झोंका भी,

गर छू जाता कहीं,

सिहर उठता अंग अंग,

ठीक उसी एक पल ही,

यह प्रथम प्रेम का प्रथम स्पर्श,

याद मुझे है इस पल भी।।


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