किस भरोसे पर बैठे हो ?
किस भरोसे पर बैठे हो ?
ना कोई सवाल
ना कोई जवाब
टूटे रिश्तों में सन्नाटा पसर जाता है
खींच लो जितनी खींचनी हैं,
लकीरें अहम की ..
बनाते रहो ऊँची और मज़बूत,
दीवारें अहंकार की ..
सहेज के रख लो,
ख़ुशियाँ कल के लिए ..
जीते रहो आज,
फिर कोई रोना लिए ..
गिले शिकवों में गुज़र तो जाएगा,
हर किसी का सफ़र ..
पर रुको तो ज़रा
किस भरोसे पर बैठे हो ?
"कल" ?
देखा है क्या तुमने आने वाला कल ?
समय ना रुका है,
ना रुकेगा किसी के लिए ..
ग़मों को पीछे छोड़
हँसते मुस्कुराते चलो,
एक ना एक मोड़ पर
सफ़र ख़त्म हो जाता है
चलते चलो यारा
जीवन पल में सिमट जाता ह