तमन्ना
तमन्ना
आ गई है हलक़ तक ये बात कैसे।
फिर तमन्ना मर रही है नाथ कोई।।
आ गई है फ़लक तक ये साथ कैसे।
रात दिन चलती नहीं अब साफगोई।।
आ गई है पलक तक ये बात कैसे।
रात भर सोया नहीं है नाथ कोई।।
आ गई है ललक तक लम्हात कैसे।
बात कर रोया यहीं है नाथ कोई।।
आ गई है अलक तक ये हाथ कैसे।
फिर दिखावा ही यहीं है तात कोई।।
आ गई है झलक तक ये आँख कैसे।
फिर विधाता की है ये सौगात कोई ।।
आ गई है ढलक तक ये उम्र कैसे।
फिर तरुन्नम बन गई है बात कोई।।