आ गई है ढलक तक ये उम्र कैसे। फिर तरुन्नम बन गई है बात कोई।। आ गई है ढलक तक ये उम्र कैसे। फिर तरुन्नम बन गई है बात कोई।।
सुख दुःख दुनिया जीव अधारा सकल जगत के हो संकट हारा सुख दुःख दुनिया जीव अधारा सकल जगत के हो संकट हारा