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Anuradha Negi

Abstract

4.5  

Anuradha Negi

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दरिया मोहब्बत का

दरिया मोहब्बत का

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कश्ती का सहारा ले मोहब्बत का मारा 

हलचल मचा दे जहां दरिया का किनारा,

डूबने का खौफ और पार करने की आस  

रहे साथ उस पार भी ऐसा नहीं कोई खास।


कम चलती है ज्यादा तो रूक जाती है 

हर बार मोहब्बत केे आगे झुक जाती है,

अजीब ही मोड़ ले आई है गुमनाम दास्तां 

उम्र बीती लेकिन अब तक नहीं पता रास्ता।


अब गिले शिकवे भी करके क्या करना है

जब ठोकरें दोहरा दें कि साथ नहीं चलना है,

बस हर बार का गिरना और फिर संभलना है

बस इसी उलझन में ये लंबा सफर चलना है।


खुद समझ लिया और दिल को भी समझाया है

कुछ पल दर्द, सुकून और फिर यादों का साया है,

तन्हा पल कट जाते हैं और काट भी नहीं सकते

दर्द जिससे है सहते हैं उसी से बांट भी नहीं सकते।


 


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