STORYMIRROR

Ruchika Rai

Abstract

4  

Ruchika Rai

Abstract

नजरें

नजरें

1 min
281

ये मेरी नजरें जो हैं खतावार हुई,

जबसे तेरी नजरों से ये दो चार हुई,

धड़कनों को एक वजह दे गयीं ये,

स्वयं के लिए ही सदा कुसूरवार हुई।


इन नज़रों में सदा ही पाकीज़गी थी,

मिलन की आस थी नही दिल्लगी थी,

हया थी ,एहतराम था बंदगी भी थी,

एक दूसरे से पहचान की भी खुशी थी।


इन नज़रों में मिलन की आस थी,

अपनेपन से जुड़े होने की विश्वास थी,

इन नजरों में आत्मसम्मान रहा था सदा,

इन नज़रों में एक दूजे के लिए प्यास थी।


ये नज़रें नही कभी खतावार हुई,

दिल से जुड़कर दिल के लिए बेकरार हुई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract