सरेआम खूँखार दरिंदे
सरेआम खूँखार दरिंदे
खुलेआम खूँखार दरींदे,
बाजारों मेंं घूम रहे।
घूर रहें हैं माँ बहिनों को,
इज्जत उनकी लूट रहे।
लोकतंत्र बेढंगा अपना,
नेताओं की बात न कर।
ओढ़ के चोला शरीफाई का,
दमखम सारा फूँक रहे।
बैठें हैं हर ओर वो चुपके,
कोने कुचारे में हैं दुबके।
चोरी चुपके पीछा करके,
हमकों बहला फुसलाकर के।
गैंग बनाकर नन्हीं गुड़िया पर,
गुंडे सारे टूट रहें।
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर सब,
लोकतंत्र पर थूँक रहे।
हर तरफ मातम पसरा है,
घर से निकलने में खतरा है।
मूंद के बैठे आँखें अपनी,
लगता मुझे क्यूँ सबसे बुरा हैं।
जानबूझकर हम अब भी क्यों,
दुश्मन को नहीं ढ़ूढ़ रहे।