कड़वा सच
कड़वा सच
कल मेरी पसंदीदा सरकार नहीं थी,
मैं सरकार से हर किस्म के सवाल पूछता था,
जो जनहित मे सरकार नहीं करती थी।
मैं जो सवाल करता था उसमे ईर्ष्या होती थी कि
अगर मेरे पसंदीदा पक्ष,नेताओं की सरकार होती
तो शायद शिकायत का मौका नहीं मिलता।
आज मेरा पसंदीदा पक्ष सरकार मे है,
असल मुद्दों पर मैं आज सवाल नहीं उठाता ,
जहां भी सरकार गलत है मैं फिर भी
गलत को नजरअंदाज करता हूँ।
कहीं न कहीं मुझे पता होता है फिर भी ये सरकार
किस तरह से सही है यह समझाने मे मैं लगा रहता हूँ।
अब कल जब मेरी पसंदीदा सरकार
नहींं रहेगी तब यही सब दोबारा होगा।
सरकारें आती रहेंगी जाती रहेंगी
सब की जेबें भर जाएंगी और मैं इसी तरह
अपने पक्ष से वफ़ादारी करता रहूँगा कुत्तों की तरह।
पता नहींं मुझेमे कब सच को सच और
झूठ को झूठ मानने का तजुर्बा आएगा।
चाहे वो सच या झूठ किसी भी क्षेत्र से जुडा हो।
मैं बदलाव लाना चाहता हूँ खुद मे,
सच का स्वीकार करना चाहता हूँ,
झूठ के खिलाफ आवाज उठाना चाहता हूँ,
मैं अपने विचारों को आजादी देना चाहता हूँ।
