अजन्मी बेटी
अजन्मी बेटी
"मैं एक अजन्मी बेटी बोल रही हूँ,
सिसक सिसक कर दुःख फ़ोल रही हूँ,
माँ बाप की सजा़ मैं भोग रही हूँ,
इसीलिए कत्ल का राज़ खोल रही हूँ "
सुनो, इक दिन मेरा वज़ूद सामने आने लगा
मेरे माँ बाप का तिलमिलाने लगा ।
रोज़ मेरे घर परिवार में चर्चा होने लगी
कैसे करना है" गिराने का खर्चा "सोचने लगी ।
आखिर,को़ख में एक भयानक हादसा हुआ
दो रिश्तों में तब एक बड़ा फ़ासला हुआ ।
खून से लथपथ उस लाश को गिराया गया
ज़िंदा अरमानों को बिन कफ़न के दफनाया गया ।
बस फिर बेखौफ़ एक कत्ल हो गया
"को़ख"शब्द शर्म से लाल हो गया ।
सुनो ! अब क्या राज़ है इस कत्ल ए दास्तां का
कातिल दो नहीं,तीन थे एक "नन्हीं" जां का।