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Nadhia Gupta

Crime

4.5  

Nadhia Gupta

Crime

अजन्मी बेटी

अजन्मी बेटी

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"मैं एक अजन्मी बेटी बोल रही हूँ 

 सिसक सिसक कर दुःख फ़ोल रही हूँ 

 माँ बाप की सज़ा मैं भोग रही हूँ 

 इसीलिए क़त्ल का राज़ खोल रही हूँ।"


सुनो

इक दिन मेरा वज़ूद सामने आने लगा 

मेरे माँ बाप का ग़ुरूर तिलमिलाने लगा।

 

रोज़ मेरे घर परिवार में चर्चा होने लगी 

कैसे करना है" गिराने का ￶खर्चा "सोचने लगी।


आख़िर, को़ख में एक भयानक हादसा हुआ

दो रिश्तों में तब एक बड़ा फ़ासला हुआ।


ख़ून से लथपथ उस लाश को गिराया गया

ज़िंदा अरमां को बिना कफ़न के दफनाया गया।


बस फिर बेखौफ़ एक क़त्ल हो गया  

"को़ख"शब्द शर्म से लाल हो गया ।


सुनो ! अब क्या राज़ है इस क़त्ल ए दास्तां का

क़ातिल दो नहीं, तीन थे एक "नन्हीं" जां का।


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