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Nadhia Gupta

Abstract

4.2  

Nadhia Gupta

Abstract

पूछती हूँ ...

पूछती हूँ ...

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बेटी बीज को खुद ही जिसने बोया 

उसी को मसलने क्यूँ निकला है?


बाप बन कर लिबास दिया रिश्ते को

उसी के अंदर झाँकने क्यूँ निकला है ?


कब तक माँ का साया साथ चलेगा

अँधेरे में भी साया साथ कभी चला है ?


बचती बचती चलती थी रस्ते पर

हर मोड़ पर नया बाप क्यूँ मिला है ?


टकराती रह गयी मौजें चीखों की

मौजों से भी पत्थर कभी पिघला है ?


चीथड़ा चीथड़ा कर दिया दुपट्टा उसका

चीथड़ों को भी किसी ने कभी सिला है ?


न कोख़ के अंदर न कोख़ के बाहर

आखिर कहाँ

बेटी को उसका घर महफूज़ मिला है ?


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