पूछती हूँ ...
पूछती हूँ ...
बेटी बीज को खुद ही जिसने बोया
उसी को मसलने क्यूँ निकला है?
बाप बन कर लिबास दिया रिश्ते को
उसी के अंदर झाँकने क्यूँ निकला है ?
कब तक माँ का साया साथ चलेगा
अँधेरे में भी साया साथ कभी चला है ?
बचती बचती चलती थी रस्ते पर
हर मोड़ पर नया बाप क्यूँ मिला है ?
टकराती रह गयी मौजें चीखों की
मौजों से भी पत्थर कभी पिघला है ?
चीथड़ा चीथड़ा कर दिया दुपट्टा उसका
चीथड़ों को भी किसी ने कभी सिला है ?
न कोख़ के अंदर न कोख़ के बाहर
आखिर कहाँ
बेटी को उसका घर महफूज़ मिला है ?