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अजय जयहरि कीर्तिप्रद

Drama Inspirational Tragedy

4.5  

अजय जयहरि कीर्तिप्रद

Drama Inspirational Tragedy

मिट गया है तन

मिट गया है तन

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मिट गया है तन भले ही

पर जगाई आस है।

कैसे कह दूँ खो दिया

हमनें अपना खास है।


फिर दरख्तों से कोई

आवाज़ हमको दे रहा।

लग रहा जैसे कोई

भर रहा विश्वास हैं।

मिट गया है तन भले...


इससे पहले हार भी थी

जीत को ललकारती।

जो गया करकर खड़ी

इमारते विश्वास की।


डूबता सूरज भी देखो

दे रहा आवाज है।

हार कदमों में पड़ी

जीत पक्की आज है।

मिट गया है तन भले...


जो उसने चाहा हो गया

डर भी डरकर सो गया।

ख्वाब था कब से अधूरा

पलभर में पूरा हो गया।


डरके आगे जीत

और जीत से विश्वास है।

मरते - मरते दे गया

जो हमको अपना आज है।

मिट गया है तन भले...




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