"किसान"
"किसान"
'जय जवान जय किसान'
नारा है ये कितना सटीक,
लगते एक दूज के पूरक...
आते दोनों देश के काम...!!
एक देश की सीमा की रखते रखवाली,
दूजा देश को अन्न हैं देता,
हैं दोनों का काम बड़ा जटिल सा....
पर दोनों कर्म अपना बड़ी ही निष्ठा से करते...।।
यदि किसान उपजाए फसल ना,
तो हालत क्या देश मेरे की हो होती,
इसीलिए पूरे तन और मन की बाज़ी लगाकर,
अपनी पूरी धन - दौलत भी लगाकर,
खेतों में हम सब के लिए हैं प्राण उपजाते....।।
अपने तन और मन की सुध न रखते,
दिन और रात कहाँ है बीते....
इस सब की उसको ख़बर ना रहती,
पास यदि ना हो पैसा फिर भी....
वह लेते हैं सर पर कर्ज बड़ा है,
तब जाके धरती उपजती सोना.....।।
इतना सब करने के बाद भी,
उसको मूल्य कहाँ पूरा मिलता....
ना ही यातायात की पूरी सुविधाएं मिलती,
जाने कितना व्यर्थ अनाज हो जाता....
कभी-कभी खेतों में ही सड़ जाता ....।।
इन्हीं कारणों से जाने कितने किसान ,
कर्ज से मुक्ति ना पाने पर.....
अपनी जान के दुश्मन बन जाते,
और हार के अपना जीवन ही तज देते ....।।
यदि मिले सुविधाएं पूरी उनको,
और फसल का सही मूल्य मिले,
खाद्य सामग्री और दवाएं की भी सुविधा यदि मिले...!!
हरित क्रांति देश मेरे में चारों ओर फसल लहराएं
देश की अर्थव्यवस्था में तब चार चांद और लग जाएं
किसान भी अपना जीवन निर्भय होकर तब जी पाएं....।।
