काले लिबास में लिपटी हे नारी
काले लिबास में लिपटी हे नारी
काले लिबास में लिपटी हे नारी!
तेरे दामन में आँसू भरे किसने हैं
तेरी दर्द का दास्तान सुनी किसने है?
जिंदगी भर काले लिबास में लिपटी रही
तेरी आंखों की आँसू देखे किसने हैं?
एक हाथ से दूसरे हाथ कुर्बान होती रही
हलाला का दलाल बनाया किसने है?
रोती रही बिलखती रही बेघर हो
विलाप करती रही
बोल! तेरे आंखों के आँसू
पोंछे किसी ने हैं?
आँसू को मजबूरी नहीं ताकत बना
दिल के दर्द को आग बना
बच्चों की तू माँ भी है
दर्द उनके क्यों सहती रही?
क्यों झोंक देती है
निकाह आड़ में खुद को,
आग बन कर तू लिपट जा
उतार फेंक काला कफ़न
आज़ाद कर ले इन धर्मान्धियों से
और उड़ जा उन्मुक्त गगन में।
देख सपनें जो इंतजार कर रहे हैं तेरा
खुद पर विश्वास कर
पंख फैलाये उड़ान भर,
ये आसमान तेरा है
ये दुनिया तेरी है
जीवन में मधुरता तेरा हक़ है,
तू इंसान है, लिबास नहीं,
जो इस्तेमाल कर फेंक दिया जाए।
काले लिबास में लिपटी, हे नारी!
खुद पर भरोसा कर
खुद को तू प्यार कर।