सपने
सपने
कुछ सपने आँखों में नहीं,
दिल में होते हैं,
हम तराशते नहीं उन्हें,
वो हमें तराशते हैं।
देखते हैं, पहचानते हैं,
हमारी शख्सियत को,
फिर तय करते हैं,
रुकूँ या चलूँ।
गर कद्र नहीं करते हम उनकी,
वो छोड़ चले जाते हैं,
किसी और ज़रूरतमंद के पास,
जो निभाये उन सपनों का साथ।
हम भी क्या करें,
जब तक एहसास होता है,
दिल क्या कह रहा,
किसी और कि आगोश में समा चुके होते हैं।
और डर जाते हैं,
दिल ने धोखा दे दिया तो,
फिर हम दबाकर अपनी सब ख्वाहिशें भीतर,
एक अंधेरी, अनदेखी, राह पर बढ़ चलते हैं।
फिर कहीं रास्ते में,
जब दिख जाती है वही रोशनी,
किसी और की हकीकत में,
जो थी कभी हमारे भीतर,
सपना बनकर।
घुटते रहते हैं,
सोचते रहते हैं,
आए वो इंसान जिसने पूरी कर ली
मेरी जैसी ख्वाहिशें ही -
आए, थाम ले वो मेरा हाथ,
और कहे -
चलो, मेरे साथ,
अभी तो ज़िन्दगी की शुरुआत है बस,
अब जी भी लो अपने सपनों को तुम,
मेरे संग -
ऐ राही !