सुहागन_फ़ौजी_की
सुहागन_फ़ौजी_की
मांग तेरे नाम की सजाए रहती है
आएगा लौटकर ये आस जगाए रहती है
सुहाग की रात को जो छोड़ आया था
बिस्तर वो आज तक बिछाए रहती है
कब तेरे आने की चिट्ठी आ जाए की
आँखें बस दरवाज़े पर टिकाए रहती है
सुहागन फ़ौजी की इस बात का मान भी
पर दर्द गहरे भी दिल में छुपाए रहती है
लिपट तिरंगे में ना आ जाए एक-दिन
ये सोच-सोच अंदर से घबराए रहती है
उजड़ ना जाए चमन बहारों का अचानक
कि दुआ में दिए घी के जलाए रहती हैं
सांसें हैं बाकी अभी तू आने वाला है
इसी इंतज़ार में दिन-रात बिताए रहती है
गले आकर लगाने पर बिखर ना जाए
डर से आँख-ए-आँसू मिटाए रहती है
जब हो मिलन कुछ रह ना जाए बाकी
कि रस्म तिलक की तस्वीर संग निभाए रहती है