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"लोक व्यवहार नेग रिवाज"

"लोक व्यवहार नेग रिवाज"

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जाति पाति का, हमें तोड़कर बंधन,

करना चाहिए, सम व सद व्यवहार।

पद ,प्रतिष्ठा, धन, दौलत न देखें,

अनुजों को स्नेह, बड़ों को दें सत्कार।।


सत्पथ पर हम, नित बढ़ते ही जाएं,

छल कपट न लें, जीवन में आकार।

अभिमान करें न हम, धन संपत्ति पर,

दूजे की मदद की रहे, सदैव दरकार।।


बच्चों को अच्छी शिक्षा, दें उत्तम संस्कार,

बुजुर्गों को सेवा दें, भाई बहन को करें दुलार।

सबके सुख दुःख में शामिल हो, बने इंसान,

देश व विधि की रक्षा को, हम हों जिम्मेदार।।


अपनी गलती स्वीकारें, बने नेक इंस

ान

दौलत से न बल्कि, सज्जनता से हो धनवान।

रिश्तों को सदा अहमियत देना, हम जाने,

काम क्रोध व ईर्ष्या से, बन जाते हैं हैवान।।


मन में रखें सदविचार, अच्छे लोगों के साथ रहें,

अपनों की ख़ुशियों की ख़ातिर, दुःख भी सहें।

निःस्वार्थ भावना मन में रख, हम कार्य करें,

अच्छे बर्ताव से यश मिले, जीवन सार्थक कहें।।


वर्षों से नेग रिवाज का, समाज में व्यवहार,

शादी विवाह में ख़ुश हो, हम देते हैं उपहार।

कई मौकों पर मिले हमें, अपनों से नेग,

नेग रिवाज से मन में हो, ख़ुशियाँ अपार।।



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