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मातृभूमि, माँ और मानवता

मातृभूमि, माँ और मानवता

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जन-जन में जहाँ बसे हों महात्मा,

बोस, आज़ाद और कलाम,

समस्त विश्व को जिसने दिया धर्म,

अहिंसा, ज्ञान-विज्ञान का सलाम

स्वतंत्रता का अर्श दिखाया हमको

और बनाए सुदृढ़ करम ,

वीरों के बलिदान ने सींचा जिसको

और गुरुओं को जहाँ हम समझें

अतुल्य ब्रह्म

ऐसी जिस माटी की उत्पत्ति हम

उस मातृभूमि को नतमस्तक

हमारा शीर्ष नमन

 

पग-पग जिसने संभाला हमको

और बनाया अजेय-अमर

हम सदैव रहे मुस्कुराते, चाहे

उसका जीवन रहा हो एक समर

प्यार, त्याग, प्रेरणा की वो अद्वितीय

प्रतिबिम्ब,

स्वयं स्वयंभू भी जिनकी स्तुति करें

अविलम्ब

िसने सृजन किया मातृभूमि की

सेवा हेतु ,

उस माँ को नतमस्तक हमारा शीर्ष

नमन

 

जाती- धर्म की बंदिशों से मुक्त करे

जो हमें और बनाये एकजुट संसार,

परोपकार परमोधर्म सदैव और

सहिष्णुता हो जिसका अलंकार

ऐसी जिस कर्मस्थली के कुलोधव हम,

उस मानवता को नतमस्तक हमारा

शीर्ष नमन

 

माँ की ममता, मातृभूमि की दृढ़ता से

प्रसश्त,

प्रण करें बारम्बार, प्राण जबतक न हो

अस्त

हम चिकित्सकों की हो मात्र एक ही 

विजय हुंकार -हमारा कण-कण हो

मानवता की कर्मभूमि पर न्योछावर,

बनकर एक त्यौहार..

 


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