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पैसा और इन्सान

पैसा और इन्सान

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रफ्तार है काफी इन्सानों का क्या कहना,

एक ही काम बस पैसे के पीछे पड़े रहना।


दफन हुए हैं इस जमीन के नीचे अब तक,

जाने कितने तुझ जैसे ही दिवाने।


कब्र में तो जाना ही है सभी को एक दिन,

ये पैसा और सब यही रह जाएगा।


यूँ ही भागता रहा गर पैसे के पीछे,

तो देखना एक दिन तू पछताएगा।


ना कुछ आगे देखें और ना ही पीछे,

ये तो सिर्फ रफ्तार में दिखता है।


पैसे के नाम पर तो यहाँ पर आज,

हर एक इन्सान यू ही बिकता है।


इन्सान और पैसे का यहाँ पर,

सबसे बड़ा और गहरा रिश्ता है।


पैसा-पैसा करते रहता है और,

ये पैसा ही एक फरिश्ता है।


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