शब्दो के बाण
शब्दो के बाण
चाहती हूं कुछ यूं पिरोना
शब्दों को और भावों को,
अग्नि बन जो हृदय में उतरे
धो दे हर दुर्भावों को।
बहुत तड़पती,बहुत ही रोती,
मानवता आज सारी हैं,
इस वसुधा की तड़प तो देखो,
खोई कही खुशहाली हैं,
हर पथ पर कांटे बोते,
यहाँ आज माली हैं,
आये थे खुशहाली बोने,
भूले सब कि वह माली हैं,
जो देते वह ही मिलता,
कर्म ही परोसता थाली हैं,
खाली हाथ ही आये थे,
खाली हाथ ही हैं जाना,
लाये थे खुशियो के बीज,
भूल गए उसको ही बोना,
बो दे अब चंद खुशहाली,
तभी खुशियो से सजेगी थाली,
चलो फिर कुछ ले संकल्प,
करे खुद का कायाकल्प,
खुद बदले तो जग बदले,
प्रेम से ये जग निखरे।
