मररमत उसूलों की
मररमत उसूलों की
मरम्मत उसूलों की करनी अभी बाकी रह गई,
कहीं सच के मुँह पर लगी झूठी चाबी रही गई,
बना तो लिए बर्तन सोने चाँदी के भी कारीगर ने,
के अमीरी में गरीबी की थाली यूँही खाली रह गई,
आईने में देखनी सूरत खुद ही की साकी रह गई,
गुनाहों की मांगी थी शायद अधूरी माफ़ी रह गई।।