डरते स्वप्न
डरते स्वप्न
डर रहे स्वप्न इन आँखों के,
जाने किसकी नजर पड़े !
अभी मन ने कुछ कहा नहीं,
किरच से मन दरकन लगे !!
दिग्भ्रमित सी खड़ी रह गयी,
हाथों में अंगार भरे !
लाल-लाल सी तपन लिए,
मन के ये उद्गार मेरे !!
अभिव्यक्ति की आज़ादी को,
अभी तो मैंने सीखा है !
खिल न सके ये फूल मेरे,
तुमने कब पौधे को सींचा है !!
पिंजरे का पंछी क्या जाने ,
खुला गगन क्या होता है !
कटे पंख को रहा निहारता,
जब-जब वह परवाज भरे !!
पंछी यह उड़ नहीं पाये,
हर पथ पर है जाल बिछे !
हर मोड़ पर, हर डोर पर,
देखो हैं सैयाद खड़े !!
अब ऐसे जीना है मुश्किल ,
पथ के कंकड़ गड़ रहे !
निकल पड़ी हूँ द्वार खोलकर,
साथ तुम्हारा मिले, या न मिले !!