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डॉ मंजु गुप्ता

Inspirational

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डॉ मंजु गुप्ता

Inspirational

बचपन से पचपन

बचपन से पचपन

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बचपन से पचपन 

बरसों बाद याद है आया,

ले के बचपन में आया।

मात संग हम दीपक लेने,

जाते खील, बताशे लेने।


 है खुशी भरा पर्व निराला,

होता तिमिर है गुप्प काला।

नेह दीप चहुँओर जलाते,

असमता की कालिख भगाते।


पढ़-लिख के हम बड़े हुए थे,

जिम्मेदारी लिए हुए थे।

मात के संग काम कराते,

रंगोली से द्वार सजाते।


लक्ष्मी का पूजन करते थे,


घर -घर मिठाई बाँटते थे।

आशाओं के दीप जलाते,

खुशियों में पटाके छुड़ाते।


रात में माँ,हम जागते थे,

 लक्ष्मी की बाट जोहते थे।


माँ पार के काजल लगाती,

सपने में लक्ष्मी माँ आती।

शादी बाद ससुराल आयी,

खुशी का था उपहार लायी।

जगमग -जगमग दीप जले थे,

माँ -पितु के आशीष फले थे।


ये संस्कृति भारत की है,

ये रामराज्य में रत की है।

ये है प्रेम दीप ममता का,

 ये प्रकाश मैत्री-समताका ।


सदियों से दिवाली मनाते,

द्वेष, कपट, कुविचार जलाते।

साहस, निष्ठा,जोश जुटाके,

मन में चिपकी मैल छुटाके।


दीवाली - सा पर्व न दूजा,

 लक्ष्मी की करता जन पूजा।

लक्ष्मी है उस घर, जग आती,

स्वच्छता का संदेश लाती।


संकल्प दीपक हम बलाएँ,

दीप आस का गले लगाएँ

जगत में जोश दीप जलाएँ

पचपन का उजास भर जाएँ।


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