मत करो नारी की व्याख्या
मत करो नारी की व्याख्या
मत करो नारी की व्याख्या,
वह अनन्त है,
विस्तार है,
गीता सार है ...
शिव की जटा माध्यम बनती है,
तब जाकर वह पृथ्वी पर उतरती है।
पाप का घड़ा भर जाए,
तो सिमट जाती है,
शनैः शनैः विलुप्त सी हो जाती है।
सावधान,
वह विलुप्त दिखाई देती है,
होती नहीं,
कब, किस शक्ल में
वह अवतरित होगी,
जब तक समझोगे,
विनाश मुँह खोले खड़ा होगा,
और तुम !
तब भी इसी प्रश्न में उलझे रहोगे,
ऐसा क्यों हुआ !
जवाब देने का साहस रखो
तो यह भी तय है कि
गंगा सदृश्य स्त्री
क्षमारूपिणी होगी,
मातृरूपेण होगी।
शांत भाव लिए
हो जाएगी-
अन्नपूर्णा, सरस्वती, लक्ष्मी
तुलसी बन घर-आँगन को,
सुवासित करेगी ...
दम्भयुक्त उसकी व्याख्या मत करो,
वह हाथ नहीं आएगी,
रहस्यमई सी,
ऋतुओं के रहस्य रंगों में घुल जाएगी,
तुम जब तक उसे पहचानोगे,
वह बदल जाएगी।