अजीब सी तबियत है
अजीब सी तबियत है
आसाँ नहीं समझना हर बात आदमी की,
कि हँसने पे होती वारदात आदमी की।
दिन में हैं बेचैनी और रातों को उलझन,
संभले नहीं संभलते दिन रात आदमी के।
दोगज जमीं तक ना हासिल है अक्सर,
बिगड़े हुए से होते हालात आदमी के।
औरों पे करे शंंका ना खुद पे है भरोसा,
रुके कहाँ रुके है सवालात आदमी के ?
सीने में दफन है जाने कितने अँगारे ?
सुलगे हुए से होते जज्बात आदमी के।
दोगज कफ़न तक के छोड़े ना अवसर,
कि ख्वाहिशें बहुत हैं दिन-रात आदमी के।
खुदा भी इससे हारा, इसे चाहिए जग सारा,
अजीब सी तबियत है जात आदमी की।