कविता
कविता
चलो दिलों को दिलों से मिलाते हैं,
रिश्तों में आई अहंकार की दीवार गिराते हैं,
वक्त जाये न यह यूँ ही गुजर,
हर लम्हे को गैरों की खुशी में बिताते हैं,
सहारा देकर बेसहारों को,
सच्ची खुशहाली का चिराग जलाते हैं,
सेंक न सके जाति -धर्म की रोटी कोई ,
एकता की मिलकर ऐसी मिशाल बनाते हैं,
बहुत जी लिये मर-मर कर,
काम आये वतन क,कुछ जतन ऐसा करते हैं,