कोमल काया
कोमल काया
कोमल काया मन है निश्छल
सम्मान अधिकार ही चाहत है
कम न समझे कोई इन्हें
इनसे ही सृष्टि निर्माण है
यही देवी माँ दुर्गा है तो
यही कालिका विकराल है
यही अन्नपूर्णा है तो
यही शारदा समान है
यही रानी लक्ष्मीबाई तो
यही मीरा दीवानी है
यही गृह स्वामिनी है तो
यही गृह लक्ष्मी सुजान है
यही दो कुल की देवी है तो
यही वंश भी सजाय है
यही शिवशक्ति यही सावित्री
यही निःस्वार्थ प्रेम का सार है
यही मैदान में क्रिकेट खेले
यही जहाज उड़ाए है
यही पुलिस की वर्दी पहने
देश का मान बढ़ाए है
यही आर्मी बॉर्डर पर डटकर
दुश्मन को मार गिराय है
यही आठों प्रहर दक्षता दिखाती
यही नारी रूप सुहाय है।।
