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Neha Saxena

Abstract

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Neha Saxena

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शंकर शम्भू

शंकर शम्भू

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गूँज उठा है ये संसार

चारों ओर है जय जयकार

मग्न हो करके थिरक रहे हैं

शंकर शम्भू के शिवगण आज


जाते हर वर्ष हरि के द्वार

बहती है जहाँ गंगधार

कांवड़ लेने कावड़ियों की

लगती है सावन में बहार


हरियाली है चारों ओर तो

हरी चूड़ियों की खनकार

हरि के रंग में रंग जाने को

हर मन है अब तो तैयार


पेड़ों पर झूले अब पड़ गए

बच्चों में है हर्षउल्लास

कोयल की कुहू कुहू भी

मानो कह रही जय महाकाल


हर मंदिर में प्रातः से संध्या

भजनों से हो रही है शुरुआत

भोले बाबा का नाम ले लेकर

चलती है कण-कण की श्वास ।।


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