गुरू -एक मार्गदर्शक
गुरू -एक मार्गदर्शक
सरल नहीं उस मार्ग पर चलना, जो जीवन सफल बनाता है।
परम तत्व वहाँ है मिलता, मोक्ष-धाम कहलाता है।।
जन्म -मरण के बंधन हैं कटते, परम आनन्द वह पाता है।
अमूल्य धरोहर उसको ही मिलती, जो संत-शरण में जाता है।।
सुगम- सरल वह मार्ग हैं बतलाते, अध्यात्म पथ के ज्ञाता हैं।
दर्शन मात्र से भव जाल हैं कटते, जो सद्गुरु महिमा गाता है।।
छल-कपट,अहम उनको नहीं भाता, उनमें ही रमता विधाता है।
आंतरिक सम्बंध उनसे हैं बनते, जो निर्मल हृदय से जाता है।।
इच्छा ,घृणा से मुक्त रहेगा, गुरु चिंतन जो करता है।
वास्तविक स्वरूप को तू जान सकेगा, जो गुरु में समर्पित होता है।।
गुरु के मार्ग पर चलना सीखो,जो ईश्वरीय मार्ग को जाता है।
रुकावटें पल भर में सुगम बनेंगी, गुरुमय वह बन जाता है।।
गुरु-सम कोई और न दूजा, भव-बंधनों से मुक्त कराता है।
" नीरज" तू भी भज ले गुरु को, क्यों जीवन व्यर्थ गँवाता है।।