हॉस्पिटल
हॉस्पिटल
ये शब्द सुनते ही
ज़हन में एक डर
पैदा होता है,
लगता है भगवान न करे
वहां कभी जाना पड़े
पर जब कलपुरजों में
तकलीफ़ होती है तो
पैर खुद ब खुद वहां
पहुंच जाते हैं
राहत देने के लिए
इस संस्था का निर्माण हुआ था
पर व्यवस्था को इतना
जटिल बना देते हैं कि
आम आदमी उलझ कर
रह जाता है
यहां पर भी जान पहचान की
महिमा का गुण गान होता है
आपकी पहचान जरूर
होनी चाहिए नहीं तो
ऊंचे पद पर तो हों ही आप
अगर ये सब है तो
आपकी बल्ले बल्ले
अगर नही तो जनाब
हस्पताल में भर्ती
करने और इलाज़ से लेकर
वहां से मुक्त होने में
आपके पसीने छूट जाएंगे
कुल मिला कर जोड़ घटा कर
ये हिसाब बना की
राहत देने से
लेकर परेशान करने तक और
आपके पॉकेट में बड़ा सा
छेद करने तक का सारा काम
ये पूरा करते हैं !!