इसको जीकर देखते हैं
इसको जीकर देखते हैं
ये ज़ीस्त ज़ह्र है तो आज पी के देखते हैं
सुना है मौत है ये, इसको जी के देखते हैं।
तलाश है सभी को अपनी अस्ल सूरत की
कि रोज़ रंग नये आदमी के देखते हैं।
इस अहद का ये चलन ख़ूब है कि क़ैस यहाँ
किसी से मिलते हैं ,सपने किसी के देखते हैं।
सभी तो भूल गए फ़र्ज़ चाँद, सूरज भी
तमाशे रोज़ ही तो रौशनी के देखते हैं।