दो लफ़्ज़ों की कहानी
दो लफ़्ज़ों की कहानी
एक तस्वीर मेरी तकदीर थी।
हमारे बीच मज़हब की लकीर थी।
शायद हम रंग मंच के कटपुतली थे।
और हमारी डोर पुराने ख्यालों कि छोर पर बँधी थी।
एक तस्वीर मेरी तकदीर थी।
हमारे बीच मज़हब की लकीर थी।
शायद हम रंग मंच के कटपुतली थे।
और हमारी डोर पुराने ख्यालों कि छोर पर बँधी थी।