जब तक मौन रहेगी नारी
जब तक मौन रहेगी नारी
जब तक रहती है नारी मौन
वो समाज को देवी सी लगती है।
जब होती है वो मुखर
तो शूल सी चुभती है।।
पुरुष नारी को अपने संकेतो पर
चलने वाली कठपुतली समझता है।
जिसे जब जहाँ चाहे मसल दे
ऐसी नाजुक कली समझता है।।
वो भाती है तब तक जब तक
काम करती है बिन सवाल।
पर जैसे ही वो करती है प्रश्न
मच जाता है बवाल।।
रह्ती है शान्ति तब तक
जब तक वह ढोती है सड़े -गले रिवाज।
पर कोहराम मच जाता है
जब उठाती है वो आवाज।।
पर शान्ति के डर से कोई
चुप रहे कब तक।
बिना अपराध किये कोई
दण्ड सहे कब तक।।
जो जमाने को समझना है
वो समझता रहे।
जो कहन है जमाने को
वो कहता रहे।।
पर बोलना प्रश्न करना उच्चशृंखलता नहीं
जीवत्ंता की निशानी है।
ये बात खुद तो समझ गई हूँ
पर अभी दुनिया को समझानी है।।