पहला प्यार
पहला प्यार
आज मन उड़ने को बेचैन है
ये बेबाक रिश्ता तेरा मेरा सावन की पहली बारिश सा
आ खुल के जी लें पनाह दे प्यारी बाँहों की
दो ह्रदयों के आँगन में तुलसी सी पाक
प्रदीप्त शांत चाहत की कोंपलें उगी
साध चुका मन एैक्य चलो उत्सव मना लें
उर कण कण में अद्भुत से स्पंदन खिले
अंगरखे की जरी सा रूह के भीतर चले कुछ झिलमिलाता
लगे झड़ी इश्क में सावन सी
तन में मीठी वेदना जगे
आ जवाँ मौसम से कुछ पल चुरा लें
खामोशी के कोहरे से इश्क की रश्मियाँ चुने है
कहे कुछ ना ही कुछ सुने धड़कनों की
ताल पे बजती मंद साँसों की सरगम सुने
इस हसीन आलम में पुरी उम्र गुज़ार लें
मुक्ति न मांगूँ इस तन की आख़री साँस तक
ये जन्म ताउम्र जो तेरी बाँहों में कटे।