यार कलंदर
यार कलंदर
आखिर कितना अंदर जाऊं, कितना अंदर है
तेरे अंदर तेरा कोना, कितना अंदर है।
मैं पूछुं तू बोले ना, तू पूछे तो मैं मर जाऊं,
हममें जो है इश्क नहीं है ये तो जंतर है।
जग के लफड़े, घर की चिंता और माजी
तेरा जी तो बाग है लेकिन ये सब बंदर है।
छोड़ शिवाला तोड़ के माला आ जा तू,
मेरी हिचकी गीता है तू खुद मंदर है।
सरसगीत मनमीत पुकारे प्रीत धरे धन नाहीं,
नाच रहा हूँ धुन पे इसकी, यार कलंदर है।